उनका मत है कि आज व्यावहारिक अथवा संप्रेषणपरक व्याकरण की आवश्यकता है जिसके सहारे हिंदी भाषा की वैविध्यपूर्ण प्रकृति अथवा उसकी सामाजिक यथार्थता को उद् घाटित किया जा सके.
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इसीलिए उन्होंने इस शिक्षण के लिए संप्रेषणपरक व्याकरण के विकास पर बल दिया है और विदेशी भाषा के रूप में हिंदी सिखाने के लिए पारंपरिक पाठ्यपुस्तकों से अधिक महत्वपूर्ण मीडिया की सामग्री को माना है।